बाबाओं पर लगा गंभीर आरोप, अब सपा पर पलटवार
उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमा गई है, जब कुछ बाबाओं पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों ने न सिर्फ धार्मिक गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच भी बयानबाजी तेज कर दी है। समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर से बाबाओं पर लगे आरोपों को लेकर तीखी प्रतिक्रिया सामने आई, जिसके बाद अब कुछ संतों और धार्मिक संगठनों ने सपा पर जोरदार पलटवार किया है।
सपा नेताओं ने हाल ही में कुछ बाबाओं पर "धार्मिक आस्था का दुरुपयोग" करने और "राजनीतिक दलों से नजदीकियां" रखने के आरोप लगाए थे। इस बयान के बाद कई अखाड़ों और संत समाज के प्रतिनिधियों ने खुलकर सपा के खिलाफ नाराजगी जाहिर की। संतों का कहना है कि राजनीतिक लाभ के लिए सनातन परंपरा और धर्मगुरुओं को बदनाम करना सपा की पुरानी रणनीति रही है।
संत समाज ने दिया करारा जवाब
वाराणसी, प्रयागराज और मथुरा समेत कई स्थानों पर संत समाज ने प्रेस कांफ्रेंस कर समाजवादी पार्टी के नेताओं से माफी की मांग की है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता ने कहा, "हम राजनीति से ऊपर हैं। बाबाओं पर आरोप लगाना पूरी सनातन परंपरा को लांछित करने जैसा है। सपा को संतों से माफी मांगनी चाहिए।"
बीजेपी और अन्य दलों की प्रतिक्रिया
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी इस मामले में कूदते हुए सपा को घेरा है। बीजेपी नेताओं ने सपा पर धर्म के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा कि यह पार्टी सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करती है और अब संत समाज को भी नहीं बख्श रही है।
सपा का बचाव
विवाद बढ़ता देख सपा ने सफाई देते हुए कहा है कि उनकी टिप्पणी कुछ "फर्जी बाबाओं" को लेकर थी, न कि पूरे संत समाज पर। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, "हम सनातन धर्म का सम्मान करते हैं, लेकिन जो लोग बाबा के नाम पर ठगी या राजनीति कर रहे हैं, उन पर सवाल उठाना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है।"
निष्कर्ष
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से धर्म और राजनीति के रिश्ते पर बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर सपा खुद को जवाबदेह बताने की कोशिश कर रही है, वहीं संत समाज और बीजेपी इस मुद्दे को आस्था से जोड़ते हुए सपा पर बड़ा हमला कर रही हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक विमर्श और चुनावी रणनीतियों में भी अहम भूमिका निभा सकता है।